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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र -
वेदते हैं से० अथ क० कैसा ए. यह भं० भगवन् ए. ऐसे गो० गौतम ने जो ते० वे अ० अन्य तीथिक ए. ऐमा आ० कहते हैं जा० यावत् वे वेदते हैं जे० जो ते. वे एक ऐसा आ० कहते हैं मि० मिथ्या ते० वे ए० ऐसा आ• कहते हैं अ० मैं पु० पुनः गो० गौतम ए. ऐसा आ• कहता हूँ } one
से केणटेणं ! अत्थेगइया तंचेव उच्चारेयव्वं ? गोयमा ! जेण पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा कम्मा तहा वेयणं वेति तेणं पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेयणं वेदंति, जेणं पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा कम्मा नो तहा वेयणं वेदंति, तेणं पाणा भूया जीवा सत्ता अणेबंभूयं वेयणं वेदंति से तेणटेणं तहेव ॥२॥ नेरइयाणं
भंते ! किं एवं भयं वेयणं वेदेति अणेवंभूयं वेयणं वेदति ? गोयमा ! नेरइयाणं भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं कि सब प्राण भूत जीव व सत्व ऐवंभूतं वेदना वेदते हैं तो यह किस तरह है ? अहो गौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं वे मिथ्या हैं अर्थात् उन का कथन मिथ्या है. मैं ऐसा कहता हूं यावत् प्ररूपना हूं कि कितनेक प्राण भूत सत्व व जीव एवंभूत ? वेदना वेदते हैं और कितनेक प्राण भूत जीव व सत्व अनेवभूत वेदना वेदता हैं. अहो भगवन् ! !
१ जिसरीति से कर्म करना उसी रीति से उसको भोगना सो.
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8428 पांचवा शतक का पांचवा उद्देशा
भावा
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