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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
409 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
संयम से ज० जस प० प्रथम श० शतक में च० चतुर्थ उ० उद्देशे में आ० आलापक तः तैसे ने० जानना जा० यावत् ॥ १ ॥ अ० अन्यतीर्थिक मं भगवन् ए० ऐसा आ कहते हैं जा० यावत् प० प्ररूपते { हैं स० सब पा० प्राणी स० सब भू० भूत स० सब जी० जीव स० सब स० सत्य ए० ऐसी वे० वेदना
* प्रकाशक - राज बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
चउत्थ उसे आलावा तहा नेयव्त्रा जाव अलमत्थुत्ति वत्तव्वंसिया ॥ १ ॥ अण्णउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खति जाव परूर्वेति सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा सव्वेसत्ता, एवंभूयं वेयणं वेदंति से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जण्ण ते अण्णउत्थिया एव माइक्खंति जाव वेदंति, जे ते एव माहंसु मिच्छाते एव माहंसु ॥ अहं पुण गोयमा ! एव माइक्खामि जात्र परूवेमि, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेणं वेदांति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अणेवंभूयं वेयणं वेदंति ॥ होवे इस की निवृत्ति के लिये पांचवा उदेशा कहते हैं. अहो भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य मात्र संयम से क्या सिझते हैं, वुझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं ? अहो गौतम ! प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशे में {जैसा कहा वैसेही यहां जानना. अर्थात् छद्मस्थ मनुष्य नहीं सिझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत नहीं करते हैं। परंतु ज्ञान दर्शन के धारक केवली ही सिझते हैं. क्यों कि उस से विशेष कुच्छ नहीं है. ॥ १ ॥ अहो
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