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________________ * | शब्दार्थ यावत् उ० बताने को गो० गौतम चो० चौदहपूर्वी को अ० अनंत द्रव्य उ० उत्कारिका भे भेद स मि० तोडे हुवे ल० लब्धं-प. प्राप्त अ० सन्मुख हुए भ० होते हैं ते. इसलिये जा यावत् उ० बताने को से० बैसे ही भं भगवन् पं० पांचवा स० शतक का च० चौथा उ० उद्देशा स० समाप्त ॥५॥४॥ १ छ. छद्मस्थ भं० भगवन् म. मनुष्य ती० अतीत अ० अनंत सा० शाश्वत स. समय के संपूर्ण सं० णंताई दव्वाइं उक्कारिया भेएणं भिजमाणाइं लढाई पत्ताई अभिसमण्णागयाइं भवंति, से तेणटेणं जाव उवदंसित्तए ॥२४॥ सवं भंते भंतेत्ति ॥ पंचम सयस्स चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ५ ॥ ४॥ * * * छउमत्थेणं भंते ! मणूसे तीय मणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं जहा पढमसए भावार्थ अहो भगवन् ! किस तरह चौदह पूर्वधारी एक घडे से महल घडे यावत् एक दंड से सहस्र दंड बनाकर बताने को समर्थ हैं ? अहो गौतम ! भेद पांच प्रकार के कहे हुवे हैं १ खंडादि भेद सो अनेक टुकडे हुवे लोष्टादि २ प्रतर भेद सो पड नीकले अभ्रपटल ३ चूर्ण भेद तिलादि चूर्णवत् ४ अनुतटिका भेद अवटतट का भेद समान और ५ उत्कारिका भेद एरण्ड बीज समान. जो चौदह पूर्वधारी ह.त हैं उन को 50 अनंत द्रव्य उत्कारिक भेद से भेदाये हुवे प्राप्त होते हैं। इस से वे अनेक रूप बनाकर बता सकते हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह पांचवा शतक का चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ५ ॥४॥ 10 चतुर्थ उद्देशे में चौदह पूर्वधारी का महानुभाव कहा. उस से छद्मस्थ जीव सीझे ऐसी किसी को शंका 4843 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र www * पांचवा शतकका पांचवा उद्देशा 3><382 awaima
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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