________________
शब्दार्थ |
do
2 | होते हैं च० अस्थिर उ० उपकरण के लिये के० केवली अ० इस स० समय में जे० जिन आ आकाश | प्रदेश में शेष पूर्ववत् ॥ २२ ॥ प० समर्थ मं० भगवन् चो० चौदहपूर्वी घ घट से घ० घट सहस्र पवस्त्र से १० वस्त्र सहस्र क० कट (छादडी से ) क० कट सहस्र र० रथ से र० रथ सहस्र छ० छत्र से छ० छत्र सहस्र दं० दंड से दं० दंड सहस्र अ० करके उ० बताने को हं० हां प० समर्थ के कैसे चो० चौदह पूर्वी जा० भू केली सेयकाला विएसुचेत्र, जाब चिट्ठित्तए से तेणद्वेणं जाव वुच्चइ केवलीणं अस्सि समयंसि जाब चिट्ठित्त ॥ २२ ॥ भूणं भंते ! चोदसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं, अभिनिव्वट्टेत्ता उवसेत्तए ? हंता पभू । से केणट्टेणं पभू चोद्दसपुब्बी जाव उवदंसेत्तए ? गोयमा ! चोइस पुव्विस्सणं अ
चिट्ठ,
होते हैं. इस तरह अस्थिर अंगोपांग होने से केवली वर्तमान समय में जिन प्रदेशों में हस्तादि अवगाहकर } रहते हैं उन प्रदेशों में अनागत काल में नहीं रहते हैं || २२ || अब श्रुत केरली आश्री प्रश्न पूछते हैं. अहो भगवन् ! चौदह पूर्वधारी श्रुत केवली क्या लब्धि के प्रभाव से एक घडे की नेश्राय से सहस्र घडे, एक वस्त्र से सहस्र वस्त्र, एक कट (छादडी ) से सहस्र कट, एक रथ से सहस्र रथ, एक छत्र से सहस्र छत्र व एक दंड से सहस्र दंड बनाकर बताने को क्या समर्थ हैं ? हां गौतम ! चौदह पूर्वधारी समर्थ हैं.
मं
भावार्थ
803 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
६६८