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________________ * शब्दार्थ काल में ए० इन ही अ० आकाश प्रदेश में ह० हस्त जा. यावत् उ० अवगाहकर चि० रहने को गो० । गौतम णो० नहीं इ० यह अर्थ स० योग्य के० कैसे भ० भगवन् जा. यावत् के. केवली अ० इस स०१० ममय में जे.जिन आ० आकाश प्रदेश में जा० यावत चि. रहते हैं जो नहीं प. समर्थ के. केवली से. आगामिक काल में ए. इनही में ह० हस्त जा. यावत् चि० रहने को गो० गौतम के० केवली को al Eवी. वीर्य के स० योग सहित स० विद्यमान द• द्रव्य च० अस्थिर उ० उपकरण ( अंगोपांग ) भ० एसु चेव आगासपएसेसु हत्थंवा जाव उग्गाहित्ताणं चिट्ठित्तए ? गोयमा ! णोइणद्वे समढे । से केण?णं भंते ! जाव केवलीणं अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु जाव चिट्ठइ, णो णं पभू केवली सेयकालांसवि एसुचेव हत्थंवा चाव चिट्ठित्तए ? गोयमा ! केवलिस्सणं वीरियस्स सजोगसद्दव्वयाए चलाइं उवगरणाई भवंति, च लोवगरणट्टयाएणं केवली अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु हत्थंवा जाव गत काल में हस्त, पांव, बाह व जंघा अवगाह कर रहने को क्या समर्थ हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से केवली इस वर्तमान समय में जिन प्रदेशों में हस्तादि अवगाहकर रहे हुवे हैं उन प्रदेशों में ही आगामिक काल में नहीं रह सकते हैं ? अहो गौतम ! केवली को वीर्यातराय के क्षय से मन वचन व काया का व्यापार सहित विद्यमान जीव द्रव्य के भाव से थास्थिर अंगोपांग ago% पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 48805 पांचवा शतक का चौथा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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