________________
शब्दार्थ)
भावार्थ
कितनेक
do
मिथ्यादृष्टि
जा० जानते हैं पा• देखते हैं से० अथ के० कैसे जा० यावत् ण०नहीं जा० जानते हैं गो० गौतम) वे० वैमानिक दे० देव दु० दोप्रकार के प० कहे मा० मायावी मि० मिध्यादृष्टि उ० उत्पन्न हुवे अ० ( अमायावी स० सम्यग् दृष्टि उ० उत्पन्न हुए त० उन में जे ० जो ते० वे मा० मायावी मि० उ० उत्पन्न होने वाले ते० वे न० नहीं जा० जानते हैं न० नहीं पा० देखते हैं ऐ० ऐसे अ० अनंतर पासंति ? गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति, अत्थेगइया णजाणंति णपासंति ॥ से केणट्टेणं जाव णपासंति? गोयमा ! वेमाणिया देवा दुविहा प०तं॰ मायिमिच्छादिट्ठिउववण्णगाय, अमाथिसम्मादिविवण्णगाय । तत्थणं जे ते माइमिच्छदिट्टिउवकितनेक जानते, देखते हैं और कितनेक नहीं जानते हैं व नहीं देखते हैं ? अहो गौतम ! वैमानिक देव दो ( प्रकार के कहे हैं. १ मायी मिध्यादृष्टि उत्पन्न हुने और २ अमायी सम्यग् दृष्टि उत्पन्न हुवे उन में से {मायी मिध्यादृष्टि नहीं जान सकते व नहीं देख सकते हैं परंतु अमायी सम्यग् दृष्टि जान व देख सकते हैं. अमायी सम्यग्दृष्टि के दो भेद अनंतर उत्पन्न होनेवाले और परंपरा उत्पन्न होनेवाले उस में से अनंतर ( उत्पन्न होनेवाले नहीं जान सकते हैं परंतु परंपरा उत्पन्न होनेवाले जान सकते हैं. परंपरा उत्पन्न होने { वाले के दो भेद पर्याप्त व अपर्याप्त उत में अपर्याप्त नहीं जान सकते हैं परंतु पर्याप्त जान सकते हैं. पर्याप्त दो भेद उपयोग युक्त व उपयोग रहित उस में उपयोगवाले जान सकते हैं परंतु उपयोग विना के नहीं
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
६६२