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________________ शब्दार्थ | ज० जैसे मं० भगवन् के केवली च० चरिम कर्म ज० जैसे अं० अंत करने वाले आ० आलापक त तैसे च० चरिम कर्म से अ० अपरिशेष णे० जानना ॥ १७ ॥ के० केवली भं० भगवन् प० प्रकृष्ट म० मन व० वचन धा० धारण करे ६० हां धा० धारन करे ज० जो भं० भगवन् के केवल ज्ञानी प० प्रकृष्ट म० मन व० वचन धा० धारणकर तं० उसे वे० वैमानिक देव जा० जानते हैं पा० देखते हैं गो० गौतम अ० जवा जाणइ पासइ ? हंता गोयमा ! जाणइ पासइ । जहाणं भंते ! केवली चरिमकम्मंत्रा जहाणं अंतकरेणं आलावगो, तहा चरिम कम्मेणवि अपरिसेसिओ व्व ॥ १७ ॥ केवलीणं भंते ! पणीयं मणंवा, वईवा धारेज्जा ? हंता धारेज्जा ॥ भंते! केवल पणीयं मणंवा वइंवा धारेज्जा, तं णं वेमाणिया देवा जाणंति देखते हैं ? हां गौतम ! केवल चरम कर्म व चरिम निर्जराको जानते व देखते हैं. जैसे केवली चरिम कर्म व निर्जरा को जानते हैं वैसे ही क्या छद्मस्थ जानते हैं व देखते हैं ? अहो गौतम ! इस का सब अधिकार उपर के अंतकरे आलापक जैने कहना ||१७|| अहो भगवन्! क्या केवली श्रेष्ठ मन वचन धारे-उन का { व्यापार करे ? हां गौतम ! केवली श्रेष्ठ मन वचन का व्यापार करे. अहो भगवन् ! जो मन वचन ॐ केवली धारण करते हैं उन को वैमानिक देव क्या जानते व देखते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक वैमा{निक देव जानते हैं व देखते हैं और कितनेक नहीं जानते हैं व नहीं देखते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से भावार्थ 4 पंचमग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 38- 48 पांचवा शतक का चौथा उद्देशा 80-8 ६६१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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