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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालबाह्मचरिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सेवा करने वाली के से० अथ कि० क्या प० प्रमाण च० चार प्रकार के ५० प्रत्यक्ष अ० अनुमान ओ० उपमा आ० आगम ज० जैसे अ० अनुयोग द्वार में त० तैसे णे० जानना ५० प्रमाण ते० उस से प० आगे णो० नहीं अ० आत्मागम णो नहीं अ० अनंतरागम ५० परंपरागम ॥ १६ ॥ के० केवली भं० भगवन च० छेल्ला कर्म च० चरिम निर्जरा जा० जाने पा० देखे हं० हां गो० गौतम जा० जाने पा० देखे __ पमाणे ? पमाणे चउबिहे पण्णते तंजहा-पञ्चक्खे, अणुमाणे, ओवमे; आगमे,
जहा अणुओगद्दारे तहा णेयलं पमाणं जाव तेण परं णो अत्तागमे, णो अनंतरागमे, परंपरागमे ॥ १६ ॥ केवलीणं भंते ! चरिमकम्मेवा, चरिमणिज्जरंवा जाणइ पासइ ? हंता गोयमा ! जाणइ पासइ ॥ जहाणं भंते ! केवली चरिम कम्मवां चरिमणिगाय जैसा गवये, ४ गुरु की परंपरा से आप्त वचनों को मुनकर जानना सो आगम प्रमाण. इस का विशेष विवरण अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है. आत्मागम अर्थ से वीतराग को आत्मागम, गणधरों को अनंतरागम
ओर शिष्यों को परंपरागम. सूत्र से गणधरों को आत्मागम, शिष्यों को अनंतरागम व प्रशिष्यों को परंपरागम जानना ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! क्या केवली चरिम कर्म व चरिम निर्जरा को जानते हैं व
१वन का पशु विशेष, इसे रोझ भी कहते हैं.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादजी *
भाव