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________________ * -सूत्र 888 ragnmmmmmmmmmmmmmmmmmm 80 पंचगंग विवाह पण्णा अंतकरने वाले अं: अंतिम शरीर वाले को जा० जानते हैं पा०देखते हैं त० तैसे छ ० छद्मस्थ भी अं० अंत | करने वाले अं० अंतिम शरीर वाले को जा० जानते हैं पा० देखते हैं गो० गौतम णो नहीं इ. यह ॐ. अर्थ स० समर्थ सो० सुनकर प० प्रमाण मे से० अथ किं. क्या तं. वह मो० सुनकर के. केवल के. केवली के शारक के केवली मा० श्राविका का उ० सेवा करने वाला के० केवली की उ० सेवा करने वाली के त० स्वयं बुद्ध त० स्वयं बुद्ध के सा० श्रावक मा. श्राविका उ० सेवा करने वाला उ a गोयमा ! णोइणटे समटे सोच्चा जाणई पासइ, पमाणओवा ॥ से किंतं सोचा? सोचाणं ! केबलिस्सवा, केवलिसावयस्सवा, केवलिसावियाएवा, केवलिउवासग्गस्सवा, केबलिउवालियाएवा, तप्पक्खियस्सवा, तप्पक्खियसावयस्सवा, तप्पक्खियसावि? याएवा, तप्पक्खियउवासगस्सवा, तप्पक्खिय उवासियाएवा, सेतं सोचा ॥ से किंतं देखते हैं. सुनने का क्या अर्थ है ? कवली, केवली के श्रावक, श्राविका, सेवा करनेवाले, सेवा करनेवाली, स्वयंबुद्ध, स्वयंबुद्ध के श्रावक, श्राविका, सेवा करनेवाले व सेवा करनेवालियों के मुख से श्रवण, oxo करके छद्मस्थ मनुष्य अंत करनेवाले व अंतिम शरीरी को जानते व देखते हैं. अब प्रमाण का क्या अर्थ ? प्रमाण के चार भेद कहे हैं. १ चक्षु वगैरह इन्द्रियों से जाना जावे सो प्रत्यक्ष २ चिन्ह संबंध स्मरण से जो जाना जावे सो अनुमान; जैसे धूम्र से अग्नि का जानना. ३ उपमा से जाना जावे सो उपमा प्रमाण जैसे पांचवा शतक का चौथा उद्देशा शा :
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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