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शब्दाथ 4 अ० अभ्याख्यान ए०. यह दे० देवों को भं० भगवन् अ० असंयति व. वक्तव्यता सि० होवे गो गौतम ।
णो नहीं इ० यह अ० अर्थ स० योग्य णि निष्ठुर व० वचन ए० यह दे० देवोंको दे० देवोंको भं०१० भगवन् सं० संयतासंयति व० वक्तव्यता सि० होवे गो• गौतम णो नहीं इ० यह अ० अर्थ स० योग्य । अ० असद्भूत ए० यह दे० देवोंको से० अब किं. क्या खा० कहावे दे देव गो० गौतम दे देव नो0 नोसंयति व० वक्तव्यता सि० होवे ॥ १४ ॥ दे० देव भं० भगवन् क. कौनसी भा० भाषा से भा०
णो इणटे समढे, अब्भक्खाणमेयं देवाणं ॥ देवाणं भंते ! असंजयाइ वत्तव्वंसिया ? गोयमा ! णोइणटे समटे, णिहरवयण मेयं देवाणं ॥ देवाणं भंते ! संजयासंजयाइ वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! जो इणटे समढे असन्भूयमेयं देवाणं॥से किं खाइण्णं भंते !
देवाइ वत्तव्वंसिया ? गोयमा ! देवाणं नो संजयाइ वत्तव्वंसिया ॥ १४ ॥ देवाणं देवों को असंयति कहना ? यह अर्थ योग्य नहीं हैं क्यों कि ऐसा कहने से देवों को निष्ठुर (कठोर ) वचन लगता है. क्या भगवन् ! देवों को संयतासंयति कहना ? यह अर्थ भी योग्य नहीं है क्यों कि देवों को यह असद्भूत (अछता भाव ) होवे. तब अहो भगवन् ! देवों को क्या कहना ? अहो गौतम !* 'देव नोसंयति हैं ' ऐसा कहना ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! देव कितनी भाषा बोलते हैं और कौनसी भाषा
पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 4088t
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पांचवा शतकका चौथा उद्देशा **
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