SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ *म० महावीर से पु० पुछाये हुवे अ० हम को म० मनसे ही इ० यह ए० ऐसा बा० प्रश्न वा० कहा ऐ० ऐसे दे० देवानुप्रिय शेष पूर्ववत् ति० ऐसा क० करके भ० भगवन्त गो० गौतम को वं० वंदना की ण० नमस्कार किया जा जिस दि० दिशी से पा० आये ता० उसी दि० दिशी में ५० पीछे गये ॥ १३ ॥ भ० भगवन् गो० गौतमने स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को ए० ऐसा व० कहा दे० देव मं० भगवन् सं० संयति ति० ऐसी व० वक्तव्यता ति० होवे. गो० गौतम णो० नहीं इ० यह अर्थ स० योग्य वीरेणं मणसा पुट्टेणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरियासमाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नम॑सामो जात्र पज्जुवासामो तिकट्टु भगवं गोयमं वंद मंस जावदिसि पाउ भूया तामेव दिसिं पडिगया ॥ १३ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं एवं वयासी- देवाणं भंते ! संजयाइ वत्तव्वंसिया ? गोयमा ! सब दुःखों का अंत करेंगे. इस तरह मन से पूछे हुवे प्रश्नों का उत्तर मनद्वारा मीलने से हमने श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार किया. इतना कहकर वे देवों श्री गौतम स्वामी को वंदना नमस्कार { करके जहां से आये थे वहां पीछे गये || १३ || भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीर बोले कि अहो भगवन् ! क्या ' देव संयति हैं ' ऐसी वक्तव्यता होवे ? अहो गौतम ! { नहीं है. क्योंकि देवों को संयति कहने से अभ्याख्यान ( असत्य आल ) होता है. तब स्वामी को ऐसे यह अर्थ योग्य क्या भगवन् ! सूत्र भावार्थ २०२ अनुवादक - लह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी जालाप्रसादजी *# ६५६
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy