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________________ शब्दार्थ ६५५ पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) - हुवे खि० शीघ्र प० सामने गये जे. जहां भ० भगवन्त गो० गौतम ने वहां उ० आये जा. जावत् प० । नमस्कार कर ए. ऐसे व० बोले ए० ऐसा ख० निश्चय भं० भगवन् अं० हम म० महाशुक्र म० महास्वर्ग वि० विमान से दो० दो देव म०महर्द्धिक जायावत पा० आये त० तब अ० हम स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर को वं. चांदे न० नमस्कार किया म० मन से ए. ऐमा वा प्रश्न पु० पूछे क• कितने भं० भगवन दे देवानुप्रिय के अं०शिष्यसि. सिझेंगे जा० यावत् अं अंतकरेंगे त०तब स० श्रमण भ भगवन्दी ड्ढीया जाव पाउब्भया । तएणं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो २ . मणसा चेव इमाइं एयारूवाइं वागरणाई पुच्छामो-कइणं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासि सयाई सिज्झिहिति, जाव अंतं करोहिंति ! तएणं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे अम्हं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत्तअंतेवासिसयाइं जाव अंतं करेहिति, तएणं अम्हे समजेणं भगवया महामहर्द्धिक यावत् महानुभाग दो देव महाशुक्र देवलोक में महा स्वर्ग विमान से आये हुवे हैं. और हमने श्री श्रमण भगवंत महावीर को मन से ऐसा प्रश्न पूछा कि आप के कितने मो शिष्य सिझेंगे, बुझेंगे। यावत् सब दुःखों का अंत करेंगे. इस तरह मन से पूछाये हुवे प्रश्नों का श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने मन से ही ऐसा उत्तर दिया कि अहो देवानुप्रिय ! मेरे सातसो शिष्य सिझेंगे, बुझेंगे यावत् । 808 पांचवा शतकका चौथा उद्देशा maana 8 60 98.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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