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ब्दार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
महानुभाग काले स. श्रमण भ० भगवंत म० महावीर की अं० समीप पा० आये त० तब ते० वे दे० देव ।
श्रमण भ० भगवत म० महावीर को म. मन से वं. वंदना करते हैं न नमस्कार करते हैं स्कार करके इ० यह एक ऐसा वा० प्रश्न पु० पछते हैं क० कितने दे०देवानुप्रिय के अं० शिष्य स० सोम सिलसिझेंगे जा. यावत् अं० अंत क. करेंगे त तब स०श्रमण भ०भगवन्त म० महावीर ते० उन दे. देवों इसे म० मन से पु० पुछाये हुवे ते. उन दे० देवोंको म० मनसे ही इ० यह एक ऐसा म मेरे स० अं० शिष्य स० सो० सि. सिझेंगे जा० यावत् अं• अंत करेंगे त० तब ते वे दे० देवों स० श्रमण
महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया ॥ तएणं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसाचेव वंदति नमसंति नमसंतित्ता, मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति-कइणं देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाई, सिज्झिहिंति जाव अंतं करोहिंति ? ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मणसा पुढे, तेसिं देवाणं मणसाचेव इमं एयारूवं
वागरणं वागरेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ममं सत्त अंतेवासिसयाइं सिज्झिहिंति भी स्वामीकी पास आयें और उनोंने श्रमण भगवंत महावीर स्वामीको मन से ही वंदना नमस्कार कर ऐसा प्रश्न पूछा कि अहो देवानुप्रिय ! आप के कितने सो शिष्य सिझेंगे, बुझेंग यावत् सब दुःखों का अंत करेंगे? उन मन से पूछे हुवे प्रश्नोंका महावीर सामीने. मन से ही उत्तर दिया कि मेरे सात सो शिष्य सिझेंगे, बुझेंगें ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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