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शब्दार्थ 4 अ० अतिमुक्त कु. कुमारश्रमण ५० प्रकृति भद्रिक जा. यावत् वि० विनीत से० वह अ० अतिमुक्त.
कु० कुमार स० श्रमण ए० इस भ० भव में सि० सिझेंगे जा. यावत् अं० अतं करेंगे ते. इसलिये मा० } मत तु• तुम अ० अतिमुक्त कु• कुमार श्रमण की ही. हीलना करो नि० निंदाकरो खिं० खिंसना करो ग गर्दाकरो अ० निरस्कार करो तु• तुम अ० अतिमुक्त कु. कुमार श्रमण को अ० ग्लानि रहित सं० अंगीकार करो उ० ग्रहण करो भ० भक्त पा० पान वि० विनय से वे वैय्यावृत्य क० करो अ० अतिमुक्त कु० कुमार श्रमण अं० अंत करने वाले अं० अंतिम शरीरी त० तब थे० स्थविर भ० भगवंत स०
सेणं अइमुत्ते कुमारसमणे एमेणंचेव भवम्गहणेणं, सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ ॥ तंमाणं अजा ! तुब्भे अइमुत्तं कुमारसमणंहीलह,निंदह,खिंसह,गरहह अवमण्णह, तुब्भेणं देवाणुप्पिया अइमुत्तं कुमारसमणं अगिलाए संगिण्हह, अगिलाए उवगिण्हह अगिलाए
भत्तेणं, पाणेणं विणएणं,क्यावडियं करेह.अइमुत्तेणं कुमारसमणे अंतकरे चेव, अंतिमभावार्थ पानी में बहता हुवा रखकर खेलने लगे. इस तरह करते हुवे अतिमुक्त कुमार को स्थविरने देखे और
श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास आकर ऐसे बोले कि अहो भगवन् ! आपका अतिमुक्त नामक
शिष्य कितने भव में सिझेंगे बुझेंगे यावत् सब दुःखों का अंत करेंगे. श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी । बोले कि अहो आर्यों मेरा शिष्य आतिमुक्त नामक कुमार साधु इसी भव में सिझेंगे यावत् सब दुःखों का
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालामसाइजा*