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शब्दाथ पा० देखकर म0 मृत्तिका कोपा पाल बं बांधकर ना० नाव मे मेरी ना. नाविक समान णा नावा*
का अ० वह प० पात्र उ. पानी में प० वहाते हवे अ० क्रीडा करते हैं तं. उसे थे स्थविरोंने अदेखा जे. जहां स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर ते वहां उ० आये ऐ० ऐसा व० बोले ए. ऐसे ख.x निश्चय दे० देवानुपिय का अंशिष्य अ० अतिमक्त णा नामके ककमार श्रमण से वह भं० भगवन ॐ क०कितने भ० भवग्रहण में सि० सिझेंगे बु० बुझेंगे जा यावत् अं०. अंतकरेंगे अ० आर्य स० श्रमण भं०ी . भगवन् म० महावीर ते० उन थे० स्थविर को ए० एसे ब० बोले ए० ऐसे अ० आर्य ममेरा अंशिष्य
वणावमयं पडिग्गहयं उदगंसि पवाहमाणे अभिरमइ तंच थेरा अदक्खु जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति २ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी, अइमुचेनामं कुमारसमणे । सेणं भंते ! अइमुत्ते कुमारसमणे काहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति? अजोत्ति समणे भगवं महावीरे ते थेरे एवं वयासी
एवं खलु अजो ! ममं अंतेवासी. अइमुत्तेणामं कुमारसमणे पगइभद्दए जाव विणीए, भावार्थ 0 वाहिर भूमिका को गये. वहांपर उन अतिमुक्त कुमार श्रमणने पानी का प्रवाह वहता हुवा देखकर
मृत्तिका से पाल बांधकर पानी को रोका. इस तरह पानी को रोककर 'यह मेरी नाव है यह मेरी नाव है.' सा संकल्प किया. जैसे माविक नाव को चालता है वैसे ही आतिमुक्त कुमार श्रमण नाव रूप पात्र को
488 पंचमांग विवाह षण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
*38*3-48 पांचवा शतक का चौथा उद्देशा
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