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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
{सा० रखना नी० नीकालना ॥ १० ॥ ते० उस का० काल ते म० महावीर का अं० शिष्य अ० अतिमुक्तक ना० नाम के कु यावत् वि० विनीत त० तब से वह अ० अतिमुक्त कु· कुमार
उस स० समय में स० श्रमण भ० भगवंत छोटे स० साधु प० प्रकृति भद्रिक जा० स० श्रमण अ० एकदा म० बहुत वु०
वृष्टि में नि० पडती हुई क० कक्षा में प० पात्र २० रजोहरण आ लेकर ब० बाहिर [सं० नीकला वि० ( स्थंडिलकेलिये त० तब से उस स० अतिमुक्त कु० कुमार श्रमणने बा० प्रवाह को प वहता हुत्रा हुमं चणं साहरिजवा, नीहरिज्जवा ॥ १० ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अइमुत्तेनामं कुमारसमणे पगइभदए जाब विणीए तएण से अइमुत्ते णामं कुमारसमणे अण्णयाकयाई महावुट्टिकायंसि निवयमाणसि कक्खषडिग्गहरयहरण. मायाए बहिया संपट्टिए विहाराए तएणंसे अइमुत्ते कुमार समणे वाहयं वहयमाणं पासइ २ त्ता, मट्टियपालिं बंधइ २ णावियामे २ नाविओवि { जाना नहीं जाता है ॥ १० ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के भद्रिक यावत् विनीत प्रकृतिवान् अतिमुक्त (अइमते) कुमार श्रमणे एकदा महावृष्टि हुए बीछे रजोहरण व पात्र लेकर
१ आठ वर्ष पहिले दीक्षा ग्रहण नहीं करते हैं, परंतु अतिमुक्त कुमारने छ वर्ष में ही दीक्षा ग्रहण की थी जिससे कुमार श्रमण नाम रखा था.
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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