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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 4884
गर्भ में सा० लेजाता है नो नहीं ग० गर्भ से जोः योनि में सा० लेजाता है नो० नहीं जो० योनि से जो योनि में सालेजाता है प० स्पर्श कर अमुख पूर्वक जो योनि से गगर्भ में सालेजाता है ॥२॥ १० ॥ समर्थ भं० भगवन् ४० हरिणगमेषी स. शक्र का दू० दून इ० स्त्री का ग० गर्भ न० नखान से रो
६४९ रोपकूप से मा० रखने को नी नीकालने को हं० हां प० समर्थ नो० नहीं त० उसको ग• गर्भ की किं० ? as | कुच्छ भी आ० आवाधा वि. दुःख उ० उत्पात छ० चर्मछेद पु० पुनः क० करे ए० यह सु० सूक्ष्म की
साहरइ, नो जोणीओ जोणिं साहरइ, परामुसिय २ अब्बाबाहेणं अव्वाबाहं जोणीओ गम्भं साहरइ ॥ ९ ॥ पभूणं भंते ! हरिणेगमेसी सक्कस्सणं दूए इत्थीए गर्भ नहसिरंसिवा रोमकुवंसिवा, साहरित्तएवा, नीहरित्तएवा ? हंबा पभू । णो चेवणं
तस्स गब्भस्स किंचि आबाहवा, विबाहंवा, उप्पाएज्ज, छविच्छेदं पुण करेजा, ए सुलेकर गर्भाशय में रखता है. और गर्भ साहरण करते गर्भ को किसी प्रकार की बाधा पीडा नहीं होती है ॥९॥ अहो भगवन् ! शक्र देवेन्द्र का दूत हरिणगमेषी नखान से या रोम कूप से स्त्री का गर्भ रखने को अथवा बाहिर नीकालने को क्या सी है ? हां गौतम ! वह हारे गगमेषी देवता गर्भ को नखान स रखने । को व नीकालने को समर्थ है तापि उस गर्भ को किसी प्रकारकी बाधा, पीडा उत्पात व चर्म का छेद नहीं है 50 हाता है. गर्भ साहरण करने का इतना सूक्ष्मपना रहा हुवा है. देव शक्ति से गर्भ नीकालते व रखते हैं।
* पांचवा शतक का चौथा उद्दशा *
भावार्थ