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शब्दार्थ
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403 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुलि श्री अमोलक ऋषिजी।
वैमानिक में पो० बहुत जी जीव ए. एकेन्द्रियवर्जित ति तीन भं० भांगे ॥ ८॥ १० इन्द्रका भं० भगवन् ह० हरिणगमेषी. स० शक्र का दू० दूत इ० स्त्री का ग• गर्भ सा० साहरते हुवे कि० क्या ग. गर्भ से ग० गर्भ में सा० लेजाता है ग० गर्भ से जो० योनिमें सा० लेजाता है जो० योनिसे ग० गर्भ में सा० लेजाता है जो योनिसे जो योनि में सा• लेजाता है गो० गौतम नो० नहीं ग• गर्भ से ग० __ यवज्जो तिय भंगो ॥ ८ ॥ हरीणं भंते ! हरिणेगमेसी सक्कदूए इत्थीगभं साहर
माणे किं गब्भाओ गभं साहरइ, गब्भाओ जोणिं साहरइ, जोणीओ गब्भं साहरइ,
जोणीओ जोणिं साहरइ ? गोयमा ! नो गन्भाओ गम्भं साहरइ, नो गब्भाओ जोणिं दंडक का जानना. वहुत जीव आश्रित एकेन्द्रिय छोडकर शेष के तीन भांगे जानना || ८ ॥ अवस्थापिनी निद्रा में गर्भ का साहरण होता है, इसलिये गर्भ साहरण का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! शक्र देवेन्द्रका दूत [पादात्यानिकका अधिपति हरिणगमेषी स्त्रीगर्भका साहरण करते क्या जीय सहित पुद्गल पिंड रूपी गर्भ को १ एक गर्भाशय से दूसरे गर्भ में रखता है ? २ गर्भाशय से योनि में रखता है ? ३ योनि से लेकर गर्भ में रखता है ? अथवा ४ योनि से लेकर योनि में रखता है ? अहो गौतम ! शक्र देवेन्द्र का दूत हरिणगमेषी गर्भ को ? गर्भाशय से नीकालकर गर्भाशय में नहीं रखता है, २ गर्भाशय से लेकर योनिद्वार में नहीं रखता है, और ३ योनि से लेकर योनि में नहीं रखता है परंतु ४ योनि से नीका
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी घालामसादजी *
भावार्थ