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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
विषयिक स० शब्द सु० सुनते हैं णो० नहीं पा० इन्द्रिय विषय से दूरके स० शब्द सु० सुनते हैं ॥ १ ॥ ज० जैसे मं० भगवन् छ० छद्मस्य म० मनुष्य त० तैसे के० केवली गो० गौतम आ० इन्द्रिय विषयिक पा० इन्द्रिय विषय से दूरके म० सब दू० दूर मू० पास अ० पासनहि ऐसे स० शब्द जा० जानते हैं। [पा देखते हैं से० अथ के० कैसे तं० वैसे के० केवली आ० इन्द्रिय विषयिक पा० इन्द्रिय विषय से बाहिर के जा० यावत् पा० देखते हैं गो० गौतम के० केवली पु० पूर्व में मि० मर्यादा जा० जानते सुणेइ ? गोयमा ! आरगयाई सहाई सुणेइ, णो पारगयाई सदाई सुणेइ ॥ १ ॥ जहाणं भंते ! छउमत्थे मणूसे आरगयाइं सद्दाई सुणेइ णो पारगयाई सदाई सुइ तहाणं केवली कि आरगयाइं सद्दाई सुणेइ पारगयाइं सद्दाई सुणेइ ? गोयमा ! केवलीणं आरगयंवा पारगयंवा सव्वदूर मूलमणतियं सदं जाणइ पासइ ॥ से केणट्टेणं तंव केवलीणं आरगयंवा पारगयंवा जाव पासइ ? मोयमा ! केवली पुरच्छिमेणं के शब्दा नहीं सुन सकते हैं ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! जब छन्नस्थ विषय के अंदर के शब्दों सुन सकते हैं। परंतु विषय की बाहिर के शब्दों नहीं सुन सकते हैं तब क्या केवली श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में रहे हुए शब्दों सुन सकते हैं या विषय से बाहिर के शब्दों सुन सकते हैं ? अहो गौतम ! केवली श्रोत्रेन्द्रिय विषय के अंदर के व बाहिर के सर्वथा दूर के पास के, व बीच के ऐसे सब शब्द जानते व देखते हैं.
● प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाजसादजी *
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