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शब्दार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 3gp>
भ० भमवम् कि० क्या पु० स्पर्श हुवे सु० सुनते हैं अ० नहीं स्पर्श हुवे सु० सुनते हैं नो गौतम पु०/4 स्पर्श हुए सु० सुनते हैं जो नहीं अ० नहीं स्पर्श हुवे सु० सुनते हैं जा. यावत् नि निश्चय ही छ०१० छदिशी सु. सुनते हैं त० तैते भं० भगवन् छ• छद्मस्थ म० मनुष्य किं० क्या आः इन्द्रिय विषयक स. शब्द सु० सुनते हैं पा• इन्द्रिय विषय से दूर के स० शब्द सु० सुनते हैं गो० गौतम आ० इन्द्रिय __ तंजहा-संखसद्दाणिवा जाव झुसिराणिवा ॥ ताई भंते ! किं पुढाई सुणेइ, अपुट्ठाई ।
सुणेइ ? गोयमा ! पुट्ठाइं सुणेइ, णो अपुट्ठाई सुणेइ ; जाव नियमा छदिसिं सुणेइ॥
तहाण भंते ! छउमत्थे मणूसे किं आरगयाइं सहाई सुणेइ, पारगयाइं सद्दाई। प्रमुख का मुपिर शब्द सुन सकते हैं ? हां गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य हस्त मुख दंडादि से संयोजित शंख के शब्द, यावत् मुषिर के शब्द सुन सकते हैं. अहो भगवन् ! कान को स्पर्शाये हुवे शब्दों सुने जाते हैं या विना स्पर्शाये हुए शब्दों सो जाते हैं ? अहो गौतम ! स्पर्शाये हुवे शब्दों मुन सकते हैं परंतु नहीं स्पर्शाये हुए शब्दों नहीं सुन सकते हैं यावत प्रथम शतक में जैसे आहार का आधिकार कहा वैसे ही यावत् छ दिशी के शब्दों सुन सकते हैं वहांतक कहना. अहो भगवन ! छमस्थ मनुष्य क्या श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में आये हुए शब्दों सुन सकते हैं या श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में नहीं आये हुए शब्दों सुन सकते हैं ? अहो. गौतम ! छमस्थ मनुष्य श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में आये हुवे शब्दों सुन सकते हैं परंतु विषय के वाहिर है।
पांचवा शतक का चौथा उद्देशा
भावार्थ
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