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शब्दार्थ |
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
छ० छद्मस्थ भं० भगवन् म० मनुष्य आः संयोग वाले सं० शब्द सु०सुनते हैं सं० शंख का शब्द सिं० शृंगका शब्द सं० छोटे शंख का शब्द ख० खरमुखी पो० बडे बांके प० पीपी का स० शब्द प० छोटा ढोल १० बडा ढोल मं० वांकीया हो० होरंभक स० शब्द भे० भेरी झ झालर दुं दुंदुभीका स० शब्द त० तत त्रिः वितत घ० घन झू झसिर ० हां गो० गौतम छ० छद्मस्थ म० मनुष्य आ० संबंध वाले (स० शब्द सु० सुनते है तं० वह ज० जैसे सं० शंख शब्द जा० यावत् झू झूषिर शब्द ता० उनको छउमत्थेणं भंते ! मणूसे आउडिज्जमाणाई सद्दाई सुइ, तंजहा संख सद्दाणिवा, सिंगसहाणिवा, संखिय खरमुहिय, पोया, परिपिरिया सद्दाणिवा पणव, पडह, भंभा, होरंभ-सद्दाणिवा, भेरि- झलुरि- दुंदभि - सद्दाणिवा, तयाणि वितयाणिवा, घणाणिवा, झूसिराणिवा ? हंता गोयमा ! छउमत्थेणं मणूसे आउडिजमाणाई सद्दाई सुणेइ तीमरे उद्देशे में छद्मस्थ अन्यतीर्थीक वक्तव्यता कही. चौथे उद्देशे में छद्मस्थ केवली की वक्तव्यता करते हैं. अहो भगवन् ! छद्मस्य मनुष्य क्या हस्त मुख दंडादि से संयोजित शंख का शब्द, रंगका ( शब्द, छोटे शंख का शब्द, खरमुखी (बांके ) का शब्द, बडे बांके का शब्द, पींपी का शब्द, छोटे पडह ( का शब्द, ढोल का शब्द, ढक्का का शब्द, होरंभ का शब्द, भेरी का शब्द, झालर का शब्द, दुंदुभी का शब्द, विणादितत का शब्द, सतारादि वितत का शब्द, कांस्य तालादिक घन का शब्द, और वांसली |
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादगी *
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