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शब्दाथ)
भावार्थ
१० करते स० सात प्रकार का प० करता है तं० वह ज० जैसे र० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी के ने० नारकी ovo का आ० आयुष्य जा० यावत् अ० अधो स० सातवी पु० पृथ्वी के ने० नारकी का आ० आयुष्य ति० तिर्यच जो० योनिका आ० आयुष्य प० करते पं० पांच प्रकार का प० करते हैं तं वह ज०जैसे ए० एके-१० (न्द्रिय ति० तिर्यच योनिका आ० आगुष्य में भेद स० सब भा० कहना म० मनुष्य का आ० आयुष्य दु० दोप्रकार का दे० देवका आ० आयुष्य च चार प्रकार का प० करते हैं. ५ ॥ ३ ॥
4 पंचमाङ्ग विवाह दण्णत्ति (भगवती) सूत्र
रयणप्पभापुढवी नेरइयाउयंवा जाव अहे सत्तमा पुढवी नेरइयाउयंश, ॥ तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ तंजहा एगिंदिय तिरिक्ख जोणियाउयंत्रा भेदो सव्वो भाणियव्वो । मणुस्साउयं दुविहं पकरेइ देवाउयं चउन्विहं पकरे || सेवं भंते भंतेत्ति ॥ पंचमसए तईओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ ५ ॥ ३ ॥
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* पांचवा शतकका तीसरा उद्देशा
( सात प्रकार के आयुष्य का बंध करता है, रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी का आयुष्य यावत् सातवी तमतमा पृथ्वी के नारकी का आयुष्य. तिर्यंच योनि के आयुष्य का बंध करनेवाला एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि ऐसे पांच प्रकारके आयुष्यका बंध करता है. कर्मभूमि व अकर्म भूमि ऐसे दो प्रकार के आयुष्य का (बंध मनुष्य करता है. और भुवनवति, वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक ऐसे चार प्रकार के आयुष्य का बंध देवों करते हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह पांचवा शतकका तीसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ५ ॥ ३ ॥
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