________________
शब्दार्थ यावत् वे वैमानिक का दं० दंडक ॥ २ ॥ से० अब णू० शंकादर्शी भ० भगवन् जे. जो जं० जिस भ.*
०७१ योग्य जो० योनि उ० उत्पन्न होने को से० वह त• उस आ० आयुष्य ५० करता है तं. वह ज जैसे ने नारकी का आ० आयुष्य जा० यावत् दे० देवताका आ० आयुष्य हं० हां गो० गौतम जे० जो जंभ
६३४ जिस भ० योग्य जो योनि उ० उत्पन्न होने को से० वह त० उस आ० आयुष्य ५० करता है तं०१ वह ज जैसे ने नारकी का आ० आयुष्य दे० देवता का आ० आयुष्य ना० नारकी का आ०आयुष्य
भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे । एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ ॥२॥ से गूणं भंते! जे जं भविए जोणिं उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ तंजहा नरइयाउयंवा, जाव दे. वाउयंवा ? हंता गोयमा ! जे जं भविए जोणि उबवजित्तए से तमाउयं पकरेइ, .
तंजहा नेरइयाउयंवा जाव देवाउयंवा । ने इयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ तंजहा
मकता है. अहो भगवन् ! उस जीवने ऐसा आयुष्य कहां उपार्जित किया ? अहो गौतम ! जीवने , भावार्थ
ऐसा आयुष्य पूर्वभव में उपार्जित किया. जैसे नारकीका कहा वैसे ही वैमानिक तक के चौविसही दंडक का जानना ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! नरक यावत् देवयोनि में से जीव जिम योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है उसी योनि के आयुष्य का बंध क्या वह करता है ? हां गौतम ! जिस योनि में उत्पन्न । होने योग्य होता है उसी योनि के आयुष्य का बंध करता है. नारकी के आयुष्य का बंध करनेवालाई
अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी gh
marwww
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *