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शब्दार्थ
488 पर्चमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 2281
*युष्य स० सहस्र आ० अनुक्रम से गं० गुंथा हुवा जा. यावत् चि० है ए० एक ही जी० जीव ए० एक*
स० समय में दो० दो आ० आयुष्य प. वेदते हैं तं• वह ज० यथा इ० इस भवका प० परभवका जं. जिस स समय में इ० इस भवका प० वेदता है तं. उस स० समय में १० परभव का ५० वेदता है।
तंजहा इह भवियाउयं च, परभवियाउयंच, जंसमयं इह भवियाउयं पडिसंवेदेइ तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, जाव से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया तं चेव जाव परभवियाउयंच जे ते एव माहंसु तंमिच्छा. अहं पुण गोयमा ! एवं माइक्खामि जाव अण्णमण्ण घडत्ताए चिटुंति, एवामेव
एगमेगस्स जीवस्स बहूहिं आजाइसहस्सेहि. बहूहिं आउयसहस्साइं आणुपुर्दिवगंठिहजारों आयुष्य अनुक्रम से गुन्थे हुवे, बांधे हुवे, यावत् परस्पर वीस्तीर्ण व भारवाले रहते हैं. और इस से} = एक जीव एक समय में इस भव संबंधी व परभव संबंधी ऐसे दो आयुष्य वेदता है. जिस समय में इस भव संबंधी आयुष्य वेदता है उस समय में वह जीव परभव संबंधी आयुष्य वेदता है. और जिम समय में है। परभव संबंधी आयुष्य वेदता है उस समय में इस भव संबंधी आयुष्य वेदता है. अहो भगवन् ! यह
तरह है ? अहो गौतम ! अन्य तीर्थिक यावत् परभव मंबंधी आयुष्य वेदते हैं यहांतक काई १ यहां कर्म पुदल की अपेक्षा से भारपना ग्रहण कियागया है.
488 पांचवा शतकका तीसरा उद्देशा 984280
भावार्थ