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व. वक्तव्यता
एकेन्द्रिय जार
१० पछि स
शब्दाथ खर ण जलाहुवा नख ए० ये पु० पाहिले के भाव प. कहा हुवा प० आश्रित त त्रस पा० प्राण जीव
स० शरीर त उस प० पीछे म० शस्त्र से अ० अतिक्रमे जा० जावत् अ० अग्नि जीव व. वक्तव्यता मि० होवे ॥ १० ॥ अ० अथ भ० भगवन् इ० अंगार छा० भस्म बु. भूमा गो० छाने ए. ये किं० कौन मे स० शरीर वाले व० वक्तव्यता सि. होवे गो० गौतम इं० अंगारे छा० भस्म बु. भूसा गो०१ छाने पु. पूर्व भाव प० कहा हुवा ए• ये ए० एकेन्द्रिय जीव म. शरीर प. प्रयोग परिणमित जा. यावत् पं० पंचेन्द्रिय स. शरीर प० प्रयोग प. परिणमित त. उस ५० पीछे स० शस्त्र अ० अतिक्रमे
खुरे नहे एएणं तसपाणजीवसरीरा । अटुिझामे, चम्मझामे, रोमझामे, सिंगखुर णहज्झामे एएणं पुव्वभाव पण्णवणं पडुच्च सस पाण ‘जीव सरीरा तओ पच्छा सस्थाईया जाव अगणिजीवत्ति बत्तव्यं सिया ॥ १० ॥ अह भंते ! इंगाले, छारिए, घुसे, गोमए एएणं किं सरीराइ वत्तव्यं सिधा ? गोयमा ! इंगाले, छारिए, बुसे, गोमए एएणं पुथ्वभाव पण्णवणं एए एगिंदियजीवसरीरप्पयोग
परिणामियाचि जाव पंचिंदिय जीव सरीरप्पयोग परिणामियावि, तओ पच्छा सत्थाईया भावार्थ चर्म, रोम, शृंग, खुर व नख त्रस प्रागी जीव के शरीर कहाते हैं और जली हुई अस्थी, चर्म, रोम
वगैरह पूर्व भव आश्री श्रम प्राणी जीव के शरीर कहाते हैं. फीर शस्त्र यावत् अग्नि परिणमने पर अग्नि 15जीव शरीर कहाते हैं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! अंगारे, राख, भूसा व गौवर को कोनसा शरीर कहा ?
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
*भकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*