________________
880%
शब्दार्थ कसोटा ए. ये किं. कोन से स० शरीर वाले गो० गौतम पु० पृथ्वी स० शरीर वाले त. उस पी
१० पीछे अ० अग्नि जी० जीव स० शरीर वाले ॥९॥ अ० अथ भं० भगवन् अ० अस्थी अ० जलीहुई । अस्थी च० चर्म च० जला हुवा चर्म रो० रोम रो० जला हुवा रोम सिं० शृंग सिं०जला हुवा शृंग खु०खुर ०१०
खु० जलाहुवा खुर न० नख न० जला हुवा नख ए० ये किं० कोन से श० शरीर वाले व० वक्तव्यता सि. है गो. गौतम अ० अस्थी च० चर्म रो० रोम सिं० शृंग, खु० खुर न० नख ए० ये त• म प्राण जी. जीवं प्रा० शरीर वाले अ० जलीहुइ हड्डी च० जला चर्म रो० जला रोम सिं० जलाशंग खु० जला
कसट्ठिया एएणं किं सरीराइ वत्तव्वंसिया ? गोयमा! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले कसट्ठिया एएणं, पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च पुढवी जीव सरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया जाव अगाण जीव सरीराइ वत्तव्वंसिया ॥ ९ ॥ अह भंते ! अट्ठी, अटिज्झामे चम्मे, चम्मज्झामे, रोमे, रोमझामे सिंगे, सिंगज्झामे, खुरे, खुरज्झामे,
नहे, नहझामे एएणं किं सरीराइ वत्तव्यं सिया ? गोयमा ! अट्ठी चम्मे रोमे सिंगे 50 भावार्थ से शरीरवाले हैं ? अहो गौतम ! पूर्व पर्याय आश्रित पृथ्वी शरीरवाले हैं और शस्त्र यावत् अग्नि परि-1
णमने से अग्नि शरीरी है ॥ ९॥ अहो भगवन ! हड्डी, जली हुई हड्डी, चर्प, जलाहुवा चर्म, ऐसे ही 17 विना जलाहुवा व जलाहुवा रोम, शृंग, खुर, व नख को कौनसा शरीर कहा है ? अहो गौतम ! अस्थी,
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( मगवती) मूत्र
2034-380पांचवा शतक का दुसरा उद्देशा
--