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शब्दार्थ
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१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
हुवे श० शस्त्र से १० परिणमेहुवे अ. अग्नि से झा० जले हुवे अ० अग्नि से झु• शोषन हुवे अ. अ.*
से प० परिणमित अ. अग्नि जी जीव स० शरीर व वक्तव्यता सि० होवे मु० मदिरा ए. यह जे. जो द० प्रवाही ए. वह पु० पूर्वभाक ५० आश्रित ५० कहा हुवा आ० अप्काय जी० जीव स. शरीर तः उस की ५० पीछे स० शस्त्र अ० अतिक्रमे जा. यावत् अ० अग्नि जी. जीव स. शरीर ॥ ८॥ अ० अथ भं० भगवन् अ०लोहा तं ताम्बा त तरुआ सा० सीसा उ०पत्थर का तओ पच्छा सत्थातीया. सत्थ परिणामिया. अगणिज्झामिया. अगणिज्झासया अगणि सेविया अगणिपरिणामिया, अगणिजविसरीरातिवा वत्तव्बसिया । सुरा एय जे दवे एएणं पुव्वभाव पण्णवणं पडुच्च आउजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्थातीया जाव
अगणिजीवसरीरातिवत्तव्वं सिया. ॥६॥ अहणं भंते ! अये तंबे तउए सीसए उवले गौतम ! द्रव्य के दो भेद घनद्रव्य व द्रव (मवाही.) द्रव्य. जो ओदन व कुल घनद्रव्य हैं वे पूर्व पर्याय आश्री वनस्पतिकायिक हैं; फीर शस्त्र से अतिक्रमाये हुवे, शस्त्र से परिणमाये हुवे, अग्नि से धमित, अनि झूसित, व आग्नि से परिणमित उक्त पदार्थों अग्नि के शरीरवाले कहाते हैं. और सूरा (शराब) प्रवाही द्रव्य होने से पूर्व पर्याय आश्री अप्कायिक कहाता है. फीर शस्त्र यावत् अग्नि परिणमने पर अग्नि कायिक कहाता है ।। ८ ॥ अहो भगवन् ! लोहा, ताम्बा, तरुआ, सीसा, पाषाण, दग्ध कसोटा वगैरह कौन
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ