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सूत्र
शब्दार्थ का आ० ऊंचाश्वासलेना पा० नीचाश्वासलेना ज० जैसे खं० स्कंदक त० तैसे च० चार आ० आलापक
० ने मानना अ० अनेक म० लक्ष पु० स्पाहुआ उ० घातकर स० शरीर सहित नि० नीकले ॥ ७ ॥
उ० चांवल कु. कुलथ मु० मदिग ए० ये कि कौन से स० शरीर वाले ५० कहना गो० गौतम उ०४ चावल कु. कुलथ सु० मदिरा जे० जो घ० घन द० द्रव्य ए. ये पु० पहिले के भा० भाव प• कहा हुवा १० आश्रित व वनस्पति जी० जीव स० शरीर त० उस प० पश्चात् स० शस्त्र से अ० अतिक्रमे
भंते ! वाउयं चेव आणमंतिवा, पाणमंतिवा, जहा खंदए तहा चत्तारि आलावगा नेयव्वा अणेगसयसहस्सपुढे उद्दाय ससरीरी निक्खमइ ॥ ७ ॥ अह भंते !
उदण्णे, कुम्मासे, सुरा, एएणं किं सरीराति वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! उदण्णे,
है कुम्मासे, सुरा य जे घणे दक्वे, एएणं पुत्वभाव पण्णवणं पडुच्च वणस्सइजीव सरीरा भाषार्थ चलती है ॥ ६॥ अहो भगवन् ! वायकाय वायकाय का क्या श्वासोश्वास लेती है ? अहो गौतम ! स्कन्दक के
अधिकारमें वायुकाय वायुकायाका श्वासोश्वास लेती है. अनेक लक्षवारमरकर वायुकायके जीव वायुकायमें उत्पन्न
होते हैं. वायुकाय शस्त्रादिक के स्पर्श से मरती है, वैक्रेय व उदारिक शरीर की अपेक्षा से वायुकाय के नीव ॐ शरीर छोडकर जाते हैं, तेजस कार्माण की अपेक्षा से शरीर सहित जाते हैं ऐसे चार आलापक जानना॥७॥
अब अहो भगवन् ! ओदन, (चांवल ) कुलथ व सूरा इन तीनों को कोनसा शरीर कहा है ? अहो ।
> पंचम्मंग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
पांचवा शतक का दुसरा उद्देशा 84.80