SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 653
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ शब्दार्थ इ० यह अ० अर्थ म० योग्य से० अब के० कैसे भ० भगवन् ए. ऐसे वु० कहा जाता है गो. गौतम है। ते उन वा० वायु को अ०परस्पर वि० विपरीतता से उस से ल० लवण समुद्र में वे० शिखा ना० उल्लंघे नहीं से• अब ते. इसलिये जा. यावत् वा० वायु वा. वाते हैं ॥ ४॥ अ० है भ० भगवन् ई० अल्प पु० स्नेहयम वायु प० पंथ्य वायु मं० मंदवायु म० महावायु वा० चलता है इं० हां अ०है क० कब __ मढे । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जयाणं दीविञ्चया ईसिं णो णतया सामुद्दिया ईसिं जयाणं सामुद्दिया ईसिं णो णतया दीविच्चया ईसिं ? गोयमा ! तेसिणं वायाणं अण्णमण्ण विवच्चासेणं लवणसमुद्देवलं नाइक्कमइ, से तेणटेणं जाव वाया वायंति ॥ ४ ॥ अत्थिणं भंते ! ईसिं पुरेवाया पच्छावाया, मंदावाया, महाबाया, वायंति ? हंता अत्थि । कयाणं भंते ईसिं जाव वाया वायंति ? गोयमा ! जयाणं वाउयाए अहारियं भावार्थ E हजार योजन की पानी की वेल रही हुई है, उसे लोक के स्वभाव से वायु नहीं उल्लंघ सकता है. इस से अहो मौतम ! जब द्वीप के वायु चलते हैं तब लवण समुद्र के वायु नहीं चलते हैं और जब लवण समुद्र 90 के वायु चलते हैं तब द्वीप के वायु नहीं चलते हैं ॥ ४॥ अहो भगवन ! स्नेहमय वायु, पथ्य वायु, मंद वायु व महावायु चलते हैं ? हां गौतम ! चलते हैं. अहो भगवन् ! वे वायु कब चलते हैं ? अहो ॐ 12 गौतम ! जब यथारीति से वह वायुकाय जावे या उसका गमन होवे तव वायुकाय चले. अहो भगवन् ! क्या है। 48808 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र 328 *38*23 पांचवा शतक का दूसरा उद्देशा -> <
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy