________________
६१९
शब्दार्थ इस अ० अभिलाप से ने० जानना. शेष पूर्ववत् ॥ २० ॥ ज० जैसे ल० लवण समुद्र की व० वक्तव्यता
त० तैसे का० कालोदधि की भा० कहना न विशेष का० कालोदाधि ना० नाम भा० कहना. ॥ २१ ॥ अ० आभ्यंतर पु० पुष्कराध में भं० भगवन् सू सूर्य उ० ईशान कौन में उ० उदित होकर ज. जैसे.. धा. धातकी खंड की व वक्तव्यता त० तैसे अ० आभ्यंतर पु० पुष्कराध की भा० कहना १० विशेष अ. अभिलाप जा० जानना जा. यावत् त० तब अ. आभ्यंतर पु० पुष्करार्ध मं० मेरु की पु० पूर्व में प० पश्चिम से णे० नहीं है ओ० अवसर्पिणी णे० नहीं है उ० उत्सर्पिणी, अ० अवस्थित त० वहां का
मंदराणं पव्वयाणं पुरच्छिम पच्चच्छिमेणं नेवत्थि ओसाप्पणी जाव समणाउसो ? हंता गोयमा ! जाव समणाउसो ॥ २० ॥ जहा लवणसमुद्द वत्तव्वया तहा कालोदहिस्सवि भाणियव्वा, णवरं कालोदहिस्स नामं भाणियव्वं ॥ २१ ॥ आभितर पुक्खरड्डेणं भंते ! सूरिया उदीचि पाईण मुग्गच्छ जहेव धायइ खंडस्स वत्तव्वया तहेव आभिंतर पुक्खरढुस्सवि भाणियव्वा । णवरं आभिलावो जाणियव्यो, जाव तया
णं आभिंतर पुक्खरड्डे मंदराणं पुरच्छिमपञ्चच्छिमेणं, णेवत्थि ओसप्पिणी, णेव२०१ नहीं होते हैं ॥ २० ॥ जैसे लवण समुद्र की वक्तव्यता कही वैसे ही कालोदधि समुद्र की बक्तव्यता
जानना. इस में कालोदधि नाम कहना ॥ २१ ॥ आभ्यंतर पुष्कराध द्वीप का धात की खंड जैसे सब
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र -RE
84 पवित्रा शतकका पहिला उद्देशा
भावार्थ