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शब्दाथ में दा. दक्षिण में दि० दिन भ० होता है त० तब उ० उत्तर में भी दिदिन भ० होता है ज. जब उ०
+ उसर में भी त० तब धा० धातकी खंड दी० द्वीपमें मं० मेरु प० पर्वतोंकी पु० पूर्व ५०पश्चिम में रा० रात्रि भ० होती है हं० हां गो० गौतम जा. यावत् रा. रात्रि भ० होती है ॥ १८ ॥ पूर्ववत् ॥ १९ ॥ ऐ०
जयाणं उत्तरड्डेवि तयाणं धायइखंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरच्छिम पञ्चच्छिमेणं राई भवइ ? हंता गोयमा! जाव राई भवइ ॥ १८ ॥ जयाणं भंते ! धायइ खंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरच्छिमणं दिवसे भवइ, तयाणं पञ्चच्छिमेणवि, जयाणं पच्चच्छिमेगवि तयाणं धायइ खंडे मंदराणं पव्वयाणं उत्तर दाहिणेणं राई भवइ ? हंता गोयमा ! जाव भवइ ॥ १९ ॥ एवं एएणं आभिलावेणं नेयव् जाव जयाणं
भंते ! दाहिणड्डे पढमा ओसप्पिणी तयाणं उत्तरद्वे, जयाणं उत्तरद्वे तयाणं धायइ भावार्थ
में दिन होता है तब उत्तर विभाग में दिन होता है और जब उत्तर विभाग में दिन होता है तब पूर्व पश्चिम विभाग में रात्रि होती है ॥ १८ ॥ जब पूर्व पश्चिम विभाग में दिन होता है तब उत्तर दक्षिण भाग में रात्रि होती है ।। १९ ॥ इसी तरह अवसर्पिणी उत्सर्पिणी तक जानना. जब धातकी खंड के उत्तर दक्षिण विभाग में अवसर्पिणी होती है तब पूर्व पश्चिम विभाग में अवसर्पिणी उत्सर्पिणी कुच्छ
8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *