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शब्दार्थ 4 यावत् अ०. अनंतर प० पश्चात् क० कृत स० समय में प० प्रथम अ० अयन प० प्रतिपन्न भ० होती है..
ज. जैसा अ० अयन का अ० अभिलाप त० तैसे सं० संवत्सर से भा० कहना जु: युग वा० शतवर्षी वा० सहस्र वर्ष से वा० वर्ष लक्ष पु० पूर्वाग से पु० पूर्व से तु० त्रुटितांग तु० तुटित ए० ऐसे पु० पूर्व दु० तुटित अ०अडड अ०अवव हू० हूहूय उ० उप्पल प०पद्म ननलिन अ० अथिनिउर अ०अउय न०नउय ५० पउय चू०चूलिका सी०शीर्षप्रहेलिका प०पल्योपम सा० सागरोपम भा कहना ॥ १४ ॥ न० जब जं०जम्बू-1
भाणियव्वो, जाव अणंतरपच्छाकडसमयंसि पढमे अयणे पडिवन्ने भवइ. ॥ जहा अयणेणं अभिलावा तहा संवच्छरेणवि भाणियव्यो । जुएणवि, वाससएणवि, वाससहस्सेणवि, वाससयसहस्सेणवि, पुवंगेणवि, पुव्वणवि, तुडियंगेणवि, तुडिएणवि, एवं पुव्वे, २ तुडिए २, अडडे २, अववे २, हुहूय २ उप्पले २, पउमे २, नलिणे २, अत्थिणेउरे २, अउए २,णउए २,पउए २,चूलिए २,सीसपहेलिया पलि
ओवमेणवि, सागरेणवि, भाणियब्वो ॥ १४ ॥ जयाणं भंते ! जंबूद्दीवेदीवे दाहिणद्वे जैसे अपन का कहा वैसे ही दो अयन का संवत्सर, पांच संवत्सर का युग, सो वर्ष, सहस्र वर्ष, लक्षवर्ष, चौरासी लक्ष वर्ष का एक पूर्वांग, चौरासी पूर्वीग का पूर्व, वही दूहूय २ उप्पल ३ पद्म २ नलिण २ अत्यिणेउर २ अउय २ नउय २ पउय२ चूलिए, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम व सागगेपम का जानना ॥१४॥ जब जम्बूद्वीप के
68 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी चालाप्रसादजी *
भावार्थ