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शब्दार्थ *जजम्बूद्वीप के दा० दक्षिण में वा० वर्षा का ५० प्रथम स. समय प० होता है त० तैसे ही जा० यावत्
०५० होता है. ॥ ११ ॥ ज० जब भ० भगवन् ज० जम्बूद्वीप के मं मेरु की पु० पूर्व में वा. वर्षा का
प. प्रथम स० समय ५० होता है त० तब प. पश्चिम में वा० वर्षा का प० प्रथम स०११ समय में प० होता है. ज. जब ५० पश्चिम में वा० वर्षा का ५० प्रथम स० समय प० होता है त० तब जा. यावत् म मेरु पर्वत की उ० उत्तर दा० दक्षिण में अ० अनंतर ५० पश्चात् कृत स. समय में
पुरक्खकडं समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवजइ ? हंता गोयमा ! जयाणं जंबू दाहिणड्डे वासाणं पढमसमए पडिवजइ, तहचेव जाव पडिवजइ ॥ ११ ॥ जयाणं भंते ! जंबूद्दीवेदीवे मंदरस्स पुरच्छिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवजइ, तयाणं पञ्चच्छिमेणंवि वासाणं पढमे समए पडिवजइ, जयाणं पच्चच्छिमेणं वासाणं पढमे
समए पडिवजइ, तयाणं जाव मंदरस्स पन्वयस्स उत्तरदाहिणेणं अणंतर पच्छाकड ऋतु का प्रथम समय होता है तब पूर्व पश्चिम में अनंतर आगापिक वर्षाऋतु का प्रथम ई ya समय होता है. ॥ ११ ॥ जब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वन की पूर्व व पश्चिम दिशा में वर्षा का प्रथम समय होता है तब क्या उत्तर व दक्षिण दिशा में अनंतर अतीत काल में वर्षा का प्रथम समय होता है ? हां गौतम ! जब पूर्व पश्चिम में वर्षा का प्रथम समय होता है तब उत्तर व दक्षिण में
488 पंचमांग विवाह षण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 438
११.48 पांचवा शतक का पहिला उद्देशा
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