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शब्दार्थ ज. जब भं० भगवन् ज० जम्बू के मेरु पर्वत की पु० पूर्व में अ० अठाश जाध्यावत त० तब भ० भगवन्
जं. जम्बुद्वीप के उ० उत्तर में दु० बारह मु० मुहूर्त की रा० रात्रि भरोती है. हां मो० गतम जा. यावत् भ० होती है ॥ ॥ज. जब भ० भगवन जं. जम्बदीमाक्षिणार्ध में अ० अठा गह मु० महतर दि० दिन भ० होता है त० तब उ० उत्तगः अ. अठारह मु० मुहूतातर द
दिन भ० होवे पु० पूर्व १० पश्चिम में सा० अधिक दुक वारस मु० मुहर्त रा० रात्रि भ० हाती है ०१ ४ तयाणे भंते ! जंबू उत्तरं दुवालस जाव राई भवइ ? हंता गोयमा ! जाव भवई है ॥ ६ ॥ जयाणं भंते ! जंबू दाहिणड्डे अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तयाणं
उत्तरड्डे अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, जयाणं उत्तरड्ढे अट्ठारस मुहुचाणतरे
दिवसे भवइ, तयाणं जंबू मंदर पुरच्छिम पच्चच्छिमेणं साइरेगा दुवालस मुहुत्ता भावार्थ मेरु मे पूर्व दिशा में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या उत्तर दक्षिण में बारह मुहूर्त की रात्रि
होती है ? हां गौतम ! जब पूर्व पश्चिम में अठारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तर दक्षिण में बारह
मुहूर्त की रात्रि होती है. ॥६॥ अहो भगवन् ! जब जम्ब के मेरु की दक्षिण में अठारह मुहूते की अंतर ॐ में दिनहोताहै तब उत्तर में भी इतनाही दिन होता है. जब उत्तर में अठारह मुहूर्त के अंतर में दिन है सब 1 पूर्व पश्चिम में बारह महूर्त से अधिक की रात्रि होती है ? हां गौतम ! जम्बूद्वीप के भेरू से. उत्तर दक्षिण
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती)
740पांचवा शतकका पहिला उद्दशा
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