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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 438
अदित होकर ५० वायव्य कौन में आ० जाता है ५० वायव्य कौम में उ० उदित होकर उ० ईशान} * कौन में आ जाता है है. हां गो० गौतम जं० जम्बूद्वीप में मू० सूर्य उ० ईशान कौन में उ. उदित 4 होकर ना० यावत् उ० ईशान कौन में आ० जाता है ॥ ३ ॥ ज० जब भ० भगवन जं. जम्बूद्वीप में
पाईणदाहिण मुग्गच्छ दाहिणपडीण मागच्छंति, दाहिण पडीण मुग्गच्छ पडीणउदीण मागच्छंति, पडीणउदीण मुग्गच्छ उदीचिपाईण मागच्छंति ? हंता गोयमा! जंबुद्दीवेणं दीवे सूरिया उदीचिपाईण मुग्गच्छ जाव उदीचि पाईण मागच्छंति ॥३॥
जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्डे दिवसे भवइ, तयाणं बापम्प कौन में अस्त होता है ? और वायव्य कौन में उदित होकर क्या ईशान कौन में अस्त होता है ? हां गौतम ! जम्बूद्वीप में सूर्य ईशान कौन में उदित होकर अग्नि कौन में अस्त होता है. यावत् वायव्य कौन में उदित होकर ईशान कौन में अस्त होता है * ॥ ३ ॥ यद्यपि सूर्य का सब दिशि में गमन है तथापि प्रकाशके भेद से रात्रि दिन के विभाग किये हैं. अहो भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के मेरु से दक्षिण
* यहां पर सूर्य का उदय व अस्त देखनेवाले लोकों की विवक्षा से लिया है. अदृश्य सूर्य दीखने में आवे है जब उदय कहाजाता है, और दृश्य सूर्य अदृश्य होवे तब अस्त कहा जाता है. परंतु वास्तविक रीति से सूर्य का 4 उदय अस्त नहीं है.
49480 पांचवा शतक का पहिला उद्देशा
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