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शब्दार्थी + गाहन्त वः वर्गणा ठा० स्थान अ० अल्पा बहुव ॥ ४ ॥ १० ॥ ४ ॥ भंतेति ॥ उत्यस दसमो उद्देसो ॥ ४ ॥
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१ ॥ चउत्थं सर्प सम्पर्क ॥ ४ ॥ (जैसे जानमा तारतम्यता की विचित्रता से अध्यवसाय निबन्ध कृष्णादि द्रव्य समुह {लिये अध्यवसाय स्थानक असंख्यात हैं. अल्पाबहुत्व सब से थोडा जघन्य कापोत लेत्रमा के इन्सर्ग) {स्थान, उससे जघन्य नील लेश्या के द्रव्पार्य स्थान असंख्यात मुने, उस से अन्य कृष्ण लेया के द्रव्यायें स्थान अख्यात गुने, उस से जघन्य तेजोलेश्या के द्रव्यार्थ स्थान असंख्य जुनेो उस से अयम्य पत्र कालेश्या के द्रव्यार्थ स्थान असंख्यात गुने उस से शुक्ल लेखा के जघन्य पार्क स्थान, असंख्यात गुने. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यह कथा शतक का दशवा उद्देशा पूर्ण हुवा, यह चौथा शतक समाप्त हुआ ।। ४ । १० ॥ ४ ॥
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सूत्र भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक राजाबहादुर बाला सुखदेवसहायत्री ज्वालाप्रसादजी *
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