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शब्दार्थ
भावार्थ
4. पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 480
* ऐसे चर चौथा उ० प णा में ले० लेश्या पद में ने० नानना जा० यावत् परिणाम व० वर्ण र० रस गं० गंध सु द अ० अप्रशस्त सं० संक्लिष्ट उ० ऊष्ण ग० गनिपरिणाम प० प्रदेश ओ० अब
उद्देसओ पण्णवणाए चेव लेस्सापदे नेयम्बो । जाव परिणाम वण्ण रसगंध सुद्ध
अपसत्थ संकिलिड्डुण्हा, गइ परिणाम पएसोगाहण वग्गणाट्ठाण मप्पबहुं । सेवं भंते । तेजो लेश्या का उदित होता मूर्य जैसा, पद्म लेश्या का हलदी जैसा व शुक्ल लेश्या का चन्द्र जैसा श्वेत वर्ण है. अब छ लेश्या के रम कहते हैं. कृष्ण लेश्या का निम्ब वृक्ष जैसाकटु, नील लेश्या का नागर जैसा कटु, कापोत लेश्या का कच्चे बोर जैसा कपायला तेजो लेश्या का आम्र फल जैसा ग्वटमिठ पद्म लेश्या का खार क जैसा मधुर और शुक्ल लेश्या का खांड सक्कर जैसा मिष्ट. अब गंध कहते हैं. कृष्ण, नील व कापोत लेश्या के पुद्गलों की मृतक देहकी गंध समान गंध, और तेजो, पन व शुक्ल की कुसुम समान. पहिली तीन लेश्या अशुभं है और पीछे की तीन लेश्या शुभ है. पहिले की तीन लेश्या संक्लिष्ट हैं और पीछे की तीन लेश्या संक्लिष्ट नहीं हैं. पहिले की तीन लेश्या शीत व रूक्ष हैं, और पीछे की तीन लेश्या ऊष्ण व स्निग्ध हैं. पहिली तीन लेश्या दुर्गात में लेजानेवाली हैं, और पीछे की तीन लेश्या सुगति में लेजाने वाली है. जघन्य, उत्कृष्ट व मध्यम तथा उत्पातांदि भेद से परिणाम विचारना. सब लेश्या के अनंत प्रदेश ३. प्रत्येक प्रदेश असंख्यात प्रदेशावगाढ है. कृष्ण लेश्या योग्य पुद्गल वर्गणा अनंत हैं वह उदारिक
चौथा शतक का दशवा उद्देशा