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शब्दार्थ का त लीसरा उ० उद्देशा भा० कहना जा० यावत् ना० ज्ञान ॥४॥९॥
से० अथ क• कृष्ण लेश्या वाला नी• नील सेश्या को प. प्राप्त कर के त० तद्रूर ता• तवर्णपने सूत्र | उद्देसो सम्मत्तो ॥ ४ ॥ ९॥ * *
से नणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए एवं चउत्थो
यावत् कृष्ण लेश्यावाले जीव नीची दो नरक में उत्पन्न होते हैं वगैरह सत्र अधिकार पनरणा सूत्र जैसे भावार्थ
कहना. यह चौथा शतक का नवा उद्देशा पूर्ण हुना ॥ ४ ॥९॥ * E उस उद्देशे में लेडयाका अधिकार कहते हैं, अहा भगवन ! कष्ण लेश्याबाला नील लेण्या के दव्य ग्रहण
कर यदि काल करेतो क्या वह नील लेश्या में उत्पन्न होता है ? हां मौतम ! जिस लेशा के पुद्गल परिणमा कर काल करता है उसी लेश्या में उत्पन्न होता है. अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाला नील लेश्या पने वारंवार परिणमता है तो किस प्रकार वह परिणमता है ? अहो गौतम ! जैसे दूध तकर (छाछ )
रूप परिणमता है, अथा शुद्ध श्वेत वस्त्र को जैसे रंग चढावे वैसे रूपपने परिणमता है . इसी प्रकार कृष्ण जलेश्या बोला नीललेश्या पने परिणमता है, मील कापोत पने, कापोत तेजोपने, तेजो पनपने, व पद्म
शुक्ल लेश्या पने परिणमे. अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्या का वर्ण कैसा है ? अहो गौतम ! कृष्ण लेश्या का वर्ण मेघ की घटा समान श्याम, नील लेश्या का तोते के रंग समान, कापोत लेश्या का कबुतर जैसा,
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
• प्रकाशक-राज्यबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .