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________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ 4 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 48+ रा० राज्यधानी में च० बार उ० उद्देशा भा० कहना जा० यावत् व० वरुण म० महाराजा ||२४||८|| ने० नारकी ने० नारकी में उ० उत्पन्न होते हैं अ० नारकी से, अन्य प० पनत्रणा में ले लेश्या पद अटुमो उसो सम्मत्तो ॥ ४ ॥ ८ ॥ X X X मेरइएणं भंत ! नेरइएस उववज्जइ, अनेरइएणं भंते! नेरइएस उवत्रजइ ? पण्णवण एवि लेस्साए तईओ उद्देसओ भाणियन्त्रो जावं नाणाइं चउत्थसए नवमो {स्वाभी पूछने लगे कि अहो भगवन ! ईशानेन्द्र के सोम महाराजा की सोमा नामक राज्यवानी कहां है ? { अहो गौतम ! सुमन नामक महा विमान की नीचे वगैरह सब वर्णन शक्रेन्द्र के सोम महाराजा जैसे जानना. यों चारों राज्यधानी अपने २ विमान नीचे तीच्छे लोक में रही हुई हैं. यों चारों राज्यधानी के चार उदेशे भिन्नर कहना. यह चौथा शतकका पांचवा, छठा, सातवा, व आठवा ऐसे चार उद्देशे पूर्ण हुए ॥ ४॥ ८ ॥ शरीर करनेवाले होते हैं. वैसे ही नरक के जीव भी वैक्रेय शरीर करनेवाले होते हैं. इसलिये आगे नरक का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! नरक के { आयुष्यका बंध करनेवाले नरक में उत्पन्न होते हैं या अन्य जीव नरक में उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम जिनोंने नरक के आयुष्य का बंध किया है वेही नरक में उत्पन्न होते हैं; परंतु अन्य जीव नरक में नहीं {उत्पन्न होते हैं. जो नरक में उत्पन्न हुवे हैं उन को आयुष्य बंध से छोडाने को कोई भी समर्थ नहीं है। उक्त उद्देशे में देवता का अधिकार कहा. देव वैक्रेय 44843 चौथा शतक का नववा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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