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शब्दार्थ
दक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8+
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यावत् अ० अर्थनीय स. संपूर्ण च० चार लो० लोकपालों का वि० विमान २ का उ. उद्देशा च० चार वि० विमान के चा० चार उ० उद्देशे अ० अपरिशेष न विशेष ठि० स्थिति में णा० नाना प्रकार आ० आदि दु० दो ति० तीन भाग ऊ० कम ५० पल्योपम ध० वैश्रमण की हो. है दो दो स• तीन भाग व० वरुण ५० पल्यापम अ. अपसवत् दे० देवोंकी ॥४॥४॥
ईसाणस्सवि जाव अच्चणिया सम्मत्ता चउण्हविलो गपालाणं विमाणे २ उद्देसओ. चउसुवि विमाणेमु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा णवरं ठिईए नाणत्तं, आइ दुय ति भागूणा पलिया धणयस्स होति दो चेव ॥ दोसइ भागा वरुणे पलिय महावच्च देवाणं ॥ १ ॥ चउत्थसए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ४ ॥ ४ ॥ * . *
रायहाणिसुवि चत्तारि उद्देसया भाणियव्वा । जाव वरुणे महाराया ॥ चउत्थसए मात्र स्थिति में भिन्नता है. सोमवयम महाराजा की स्थिति त्रीभाग कम दो पल्योपम, वैश्रमण की दो पल्योपम की, और वरुण की स्थिति त्रीभाग अधिक दो पल्योपम जानना. इन के अपत्य देवों की एक पल्योपम की स्थिति जानना. यह चौथे शतक के चार उद्देशे पूर्ण हुने ॥ ४ ॥ ४ ॥
राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत को वंदना नमस्कार कर श्री मौतम
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी घालाप्रसादजी
भावार्थ
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