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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
२००० पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
वतंसक फ० स्फटिकावतंसक २० रत्नावतंसक जा० जातिरूपावतंसक म०मध्य में ई० ईशनावतंसक म० महाविमान पु० पूर्व में ति० तीच्छे अं० असंख्यात जो० योजन वी० व्यतिक्रान्त होते ए० यहां ई० ईशान दे० देवेन्द्र दे० देवराजा का सो० सोम म० महाराजा का सु० सुमन म० महाविमान अ० अर्ध तेरह जो० { योजन ज० जैसे स० शुक्र की व वक्तव्यता त तीसरे स० शतक में त० तैसे ई० ईशान की भी जा० १०० कवर्डस, फलिह वर्डसए, रयण वडंसए, जाइरून वर्डसए, मज्झे तत्थ ईसाण वर्डस || तत्थणं ईसाणं वडंसयस्स महाविमाणस्स पुरच्छिमेणं तिरिय मसंखेज्जाई जोयणाई वा एत्थणं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सुमणे नामं महात्रिमाणे पण्णत्ते अद्धतेरस जोयण जहा सक्कस्स वत्तव्वया, तईयसए, तहा दुवे हैं. उन से क्रोडा क्रोड योजन ऊंचे ईशान नामक दूसरा महा विमान रहा हुवा है. उस में पांच अब(तंसक (मुकुट समान) विमान हैं. १ अंकावतंसक, २ स्फटिकावतंसक ३ रत्नावतंसक ४ नातिरूपावतंसक और मध्य में ईशानावतंसक उन ईशानावतंसक से पूर्व में असंख्यात योजन तीर्च्छा जावे वहां ईशानेन्द्र के सोम महाराजा का सुमन नामक महा विमान कहा है. वह साढ़े बारह योजन का लम्बा चौडा यावत् सब वक्तव्यता शक्रेन्द्र के सोम महाराजा जैसे कहना. जैसे ईशानेन्द्र के सोम महाराजा की वक्तव्यता कही वैसे ही यम का स्फटिकावतंसक, वरुण का रत्नावतंसक, व वैश्रमण का जातरूपावतंसक का जानना - {
44 चौथा शतक का पहिया उद्देशा
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