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शब्दार्थ कितने वि० विमान प० प्ररूपे गो० गौतम च० चार वि० विमान ५० प्ररूपे सु० सुमन स० सर्वतोभद्र ।
व० वल्गु सु० सुवल्गु ॥ २॥ क० कहां ई. ईशान के सो० सोम म० महाराजा का सु. सुमन म० महाविमान ५० प्ररूपा गो० गौतम जं. जम्बूद्वीप में मं० मे प० पर्वत की उ० उत्तर से इ० इस र. रत्न प्रभा पु. पृथ्वी से जा० यावत् ई० ईशान क. देवलोक में त० वहां पं० पांच ब० अवतंसक अं० अंका
सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे ॥ एएसिणं भंते ! लोगपालाणं कइ विमाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता तंजहा-सुमणे, सव्वओभदे, वग्गू, सुवग्गू ॥२॥ कहिणं भंते ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सुमणेनामं महाविमाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए
पुढवीए जाव ईसाणे नामं कप्पे पण्णत्ते ? तत्थणं जाव पंचवडंसया प० तं, अंभावार्थ
महावीर स्वामी को श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न पुछा कि अहो भगवन् ! ईशानेन्द्र को कितने लोकपाल कहे
हैं ? अहो गौतम ! सोम, यम, वरुण व वैश्रमण ऐसे चार लोकपाल कहे हैं. अहो भगवन् ! उन के } | Eविमान कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! उन के चार विमान कहे हैं. सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु
" ॥२॥ अहो भगवन् ! ईशान देवेन्द्र का सोम नामक महा विमान कहां है ? अहो गौतम ! जम्बूद्वीप के | मेरु पर्वत की उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी से अनेक सो योजन उपर चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र व तारे रहे
श्री अमोलक ऋषिजी ने -बालब्रह्मचारीमुनि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *