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________________ शब्दार्थ .. * चतुर्थ शतकम्. * maamana च० चमर वि० विमान से च० चार हो. होते हैं रा० राज्यधानी में ने नारकी ले लेश्या से ६० दश उ० उद्देशा च० चौथे शतक में ॥ १ ॥ रा० राजगृह न० मगर में जा. यावत् ए. ऐसा व. बोले 1 . ईशान दे० देवेन्द्र दे. देवराजा को क.कितने लो० लोकपाल गो० गौतम च. चार लो. तं बह ज जैसे सो० मोम ज० यम २० वरुण ३० वैश्रमण ए० इन भं० भगवन् लो०लोकपालोंका क. चत्तारि विमाणेहि, चत्तारिय हौति रायहाणीहिं । नेरइए लेस्साहिय, दस उद्देसा चउत्थसए॥ ॥ रायगिहे गगरे जाव एवं वयासी- ईसाणस्सणं भंते ! देविंदस्स देवरणो कइलोगमला पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तंजहाभावार्थ : तीसरे शतक में देवता का अधिकार कहा है. इस में भी देवता का अधिकार कहते हैं. इस शतक के दश उद्देशे कहे हैं. पहिले चार उद्देशे में ईशानेन्द्र के चार लोकपालों के चार विमानोंका कथन है. पांचवे, छट्टे, सातवे व आठवे में उन की चार राज्यधानियों का कथन है. नववे में नरक के जीवों का और दशवे 17 में लेश्या का वर्णन है. ॥ १॥ राजगृह नगरी के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर ... स्वामी पधारे, परिषदा वंदन करने को आई धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई. उस समय में श्री श्रमण भगवंत का 48 पंचमांग विवाह पण्णति ( 883 चौथा शतकका पहिला उद्देशा 8948
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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