________________
शब्दार्थ
22 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋपिनी
राजा की क० कितनी प. परिषदा ५० कही गो० गौतम त तीन ५० परिषदा प० कही २० वह ज०. जैसे स. समिता ५० चंडा जा• जाया ए. ऐसे ज० जैसे अ० अनुक्रम से जा. यावत् अ० अच्युत । कल्प ॥ ३ ॥१०॥३॥
एवं जहाणुपुवीए जाव अच्चुओ कप्पो । सेवं भंते भंतेत्ति ॥ तईय सए दसमो है उहेसो सम्मत्तो ॥ ३ ॥१०॥ तईयं सयं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ * *
पदा है. इन के देव विना बोलाये कार्य करने के अवसर पर हाजर रहते हैं. समिया के चौवीस हजार, चंदा के अठावीस हजार व जाया के ३२ हनार देव कहे हैं. ऐसे ही तीन प्रकार की देवी की परिषदा कही है. उस में समिया की ३५० चैहा की ३०० और जाया की २५० देवियों कही हैं. आभ्यंतर परिषदा की देवियों का अढाइ पल्योपम का, मध्य परिषदा की देविषयों का दो पल्योपम का और बास परिषदा की देवियों का ॥ पक्ष्यापम का आयष्य जानना. असे असुरेन्द्र की तीन परिषदा* कही वैसे ही घलेन्द्र की तीन परिषदा जानना. ऐसे ही अच्युतेन्द्रतक के चौसठ इन्द्र की तीन २ परिषदाषों का अधिकार जानना. उन का आयुष्य वगैरह सब अधिकार जीवाभिगम सूत्र से जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. ऐसा कहकर तप व संयम से आत्मा को भावते हुए विचरने लगे. यह तीसरा शतकका दशवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ३ ॥ १० ॥ तीसरा शतकका भावार्थ संपूर्ण हुवा ॥ ३ ॥
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *