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शब्दार्थ
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भाव
42-42 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भवगती) सूत्र
जीवाभिगम में जो० ज्योतिषि का उ० उद्देशा ने० जानना अ० अपरिशेष ॥ ३ ॥९॥ * रा० राजगृह जा० यावत् ए० ऐसे ब० बोले च० चमर का भं० भगवन् अ० असुरेन्द्र अ. असुर | नेयम्वो अपरिसेसो । सेवं भंते भंतेत्ति ॥ तईयसए नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥३॥९॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-चमरस्सणं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-समिया, चंडा, जाया.. का विषय दो प्रकार का कहा है. सुशब्द व दुशब्द, ऐसे ही पांचो इन्द्रियों के विषय जानना. इस का विस्तार पूर्वक कथन जीवाभिगम सूत्र के ज्योतिषी उद्देशे में से जानना. अहो भनवन् ! आप के वचन
यथातथ्य हैं. यह तीसरा शतकका नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ३ ॥९॥ E राजगृही नगरी के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदने ।
को आई धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई. उस समय में गौतम स्वामीने वंदना नमस्कार कर ऐसा प्रश्न पूछा कि अहो भगवन् ! चमर नामक असुरेन्द्र को कितनी परिषदा कही हैं ? अहो मौतम ! उन को समि-31
या, चंडा व जाया ऐसी तीन परिषदा कहीं हैं. समिया आभ्यंतर परिषदा है, इन के देव बोलाये आते हैं.13 - विना बोलाये नहीं आते हैं. चंडाबीचकी परिषदा है, इन के देव बोलाये, विना बोलाये आते हैं. नाया वाहिरकी परि
*86020 तीसरा शतक का दशवा उद्देशा