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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सब में क० देवलोक में ए० यही भा० कहना जे० जो ई० इन्द्र ते ० वे भाव कहना ॥ ३ ॥ ८ ॥ रा० राजगृह जा० यावत् ए० ऐसा ६० बोले क० कितने भ० भगवन् ई० इन्द्रिय विषय प० कहे गो० गौतम पं० पांच प्रकार के ई० इंन्द्रिय विषय प० कहे सं० वह ज० जैसे सो० श्रोतेन्द्रिय विषय जी० भाणियन्वा ॥ जे य इंदा ते भाणियन्वा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ तईयसए अमोसो सम्मत्तो ॥ ३॥ ८ ॥
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रायगिहे जाव एवं वयासी कइविणं भंते! इंदिय विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंद्रियविष पण्णत्ते, तंजहा- सोइंदिय विसए, जीवाभिगमे जोइसियउद्देसओ
{ सातवे आठवे, नववे दशवे, अग्यारहवे, बारहवे तक का जानना. } हैं. यह तीसरा शतकका आठवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ३ ॥ ८ ॥
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राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में भगवंत पधारे. परिषदा वंदने को आई धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई. उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर को भगवंत गौतम स्वामीने प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! इन्द्रिय के विषय कितने प्रकार के हैं ? अहो गौतम ! इन्द्रिय के विषय १. श्रोतेन्द्रिय का विषय, चक्षुइन्द्रिय का विषय, घ्राणेन्द्रिय का विषय, रसनेन्द्रिय का
पांच प्रकार के हैं. विषय, व स्पर्शेन्द्रिय
का विषय. अहो भगवन् ! श्रोतेन्द्रिय का विषय कितने प्रकार का कहा है. अहो गौतम ! श्रोतेन्द्रिय
अहो भगवन् ! आप के वचन तथ्य
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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