________________
शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चि० चित्रपक्ष वि० विचित्राक्ष वि० विद्युत्कुमार को ह० हरिकंत ह० हरिसिंह प० प्रभ सु० सुप्रभ प० प्रभकान्त सु० सुप्रभकान्त ॥ ४ ॥ अ० अग्निकुमार को अ० अग्निसिंह अ० अग्निमानव ते ० तेउ ते० तेउ (सिंह ते ० तेउकान्त ने० तेउप्रभ || ५ || दी ० द्वीप कुमार को पु० पूर्ण व० वसिष्ठ रू० रूप रू० रूपांश रू० रूपसिंह रू० रूपप्रभ || ६ || उ० उदधिकुमार को ज० जलकान्त ज० जलप्रभ ज० जल ज० जल चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे ॥ ३ ॥ विज्जुकुमाराणं- हरिकंते, हरिस्सहे. पभे, सुप्पभे,
भकंते, सुप्पभते ॥ ४ ॥ अग्गिकुमाराणं- अग्गिसीहे, अग्गिमाणवे, तेउ, तेउसीहे, तेउकंते, तेउप्पभे ॥ ५ ॥ दीवकुमाराणं पुण्ण वसिट्ठ रूय, रूयंस, रूयसीह, रूयप्पभा ॥ ६ ॥ उदहिकुमाराणं जलकंत, जलप्पभ, जल, जलरूय, जलकंत, इन्द्र और प्रत्येक के चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष व विचित्र पक्ष ये चार लोकपाल कहे हैं ॥ ३ ॥ विद्युत् कुमार को दश देव अधिपतिपना करनेवाले हैं. हरिकंत हरिसिंह ये दो इन्द्र और प्रत्येक की प्रभ, सुप्रभ, प्रभकान्त, सुप्रभकान्त ये चार २ लोकपाल मीलकर दश हुए ॥ ४ ॥ अग्निकुमार को अग्निसिंह व अने मानव ये दो इन्द्र और उन के तेज, तेजसिंह, तेज कान्त व ते प्रभ ऐसे चार २ लोकपाल कहे हैं ॥ ५ ॥ द्वीप कुमार को पूर्ण व वशिष्ट ऐसे दो इन्द्र और उन के रूप, रूपॉश, रूपसिंह व रूपपथ ऐसे चार २ * लोकपाल || ६ || उदधि कुमार के जलकान्त और जलप्रभ ऐसे दो इन्द्र उन के जल, जलरूप, जलकांत व
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
५८६