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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
, रा० राजगृह न० नगर जा० यावत् प० पर्युपासना करते ए० ऐसे व० बोले अ० असुर कुमार भं० . भगवन् दे० देव को क० कितने दे० देव आः आधिपत्य जा. यावत् चि० रहते हैं गो० गौतम द० दश दे देव आ० आधिपत्य जा० यावत् वि. विचरते हैं तं० वह न० यथा च० चमर अ० असुरेन्द्र सो०११ सोम ज० यम व० वरुण वे० वैश्रमण व० बलि व० वैरोचनेन्द्र व० वैरोचन राजा ॥१॥ ना. नाग
रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी- असुरकुमाराणं भंते देवाणं कइदेवा आहेवच्चं जाव चिटुंति ? गोयमा ! दसदेवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तंजहाचमरे असुरिंदे असुरराया सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे ॥ बली वइरोयाणंदे वइरोयणराया, सोमे, जमे वरुणे, वेसमणे ॥ १ ॥ नागकुमाराणं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! सातवे उद्देशे में लोकपालों की वक्तव्यता कही. अब इस उद्देशे में देवताओं के स्वामी का कथन करते है
राजगृही नगरी में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पधारे. परिषदा वंदन करने को आई, धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई. उस समयमें श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी है ऐसा प्रश्न पूछने लगे कि अहो भगवन् ! असुरकुमार जाति के देवों को कितने देव स्वामीपने रहते हैं ?
तम ! असुर कुमार जाति के देवों को दश देव स्वामीपने रहते हैं. दक्षिण दिशा के चमर नामक अमुर का राजा असुरेन्द्र और सोम, यम, वरुण व वैश्रमण यह चार उन के लोकपाल. उत्तर दिशा के,
* प्रकाशक-राजाचहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रपादजी *
भावाथ