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शब्दार्थ गार रहित उ० विछिन्न स्वामी वाले सिं० शंगाटक ति० तीन च० चौक च० चच्चर च० चउमुख म०
महापथ प० पथ में न० नगर की मोरी में सु० श्मशान में गि० पर्वत के० गुफा सं० शान्ति स्थान से
शौलोपस्थान भ० भवन गृहमें स० रखा हुवा चि० रहता है ण नहीं ता० उसे स. शक्र दे० देवेंद्र दे HE देवराजा का वे० वैश्रमण म. महाराजा अ० अज्ञात अ० अश्रुत अ० अजान अ. अविज्ञात ॥ १७ ॥ ते० उन बे० वैश्रमण कायिक दे देवों को स० शक्र दे० देवेन्द्र दे० देवराजा वे० वैश्रमण को इ० ये निद्धमणेसुवा, सुसाण गिरि कंदर संति सेलोवट्ठाण भवणगिहेसु सण्णिक्खित्ताई चिटुंति, ण ताई सक्कस्स दविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो अण्णाया अदिट्ठा, अस्सुया, अम्मुया, अविण्णाया, ॥ १७ ॥ तेसिंवा वेसमणकाइयाणं देवाणं
सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, भावा. तीन रस्ते मीले वहां, चौक, चचर, चउमुख, महापथ, राजमार्ग, नगर की नालियों में, श्मशान, गिरि,
गुफा, शान्तिगृह, शैलोपस्थान, व भवनगृहमें रखाहुवा द्रव्य वगैरह होते हैं वे शक्र देवेन्द्रके वैश्रमण महा
राजा से अज्ञात, अदृष्ट, अशृत, अविज्ञात नहीं हैं. वे सब बातों जानते हैं ॥ १७ ॥ पूर्णभद्र, माणभद्र, 10 शालिभद्र, सुवर्णभद्र, शक्ररक्ष, पूर्णरक्ष, सर्वाण, सर्वर्यश, सर्व कार्य समिद्ध, अमोध अशान्त वगैरह।
मुनि श्री अमोलक ऋापनी +8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
-* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी मालाप्रसादजी.