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शब्दार्थ
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पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 380
की र० रत्न व० वज्र आ० आभरण ५० पत्र पु० पुष्प फ० फल बी० बीज म० माल्य व० वर्ण गं गंध व० वस्त्र भा० भाजन की बु० वृष्टि खी० क्षीर की वु० वृष्टि सु० सुकाल दु. दुष्काल अ० अल्पर्ध्य म014 महर्घ्य सु० सुभिक्ष दु. दुर्भिक्ष क० क्रय वि० विक्रय स० सनिधि सं० संचय नि० निधि नि० निधान चि० बहुत काल के पो० जीर्ण ५० रहित सा. स्वामीवाले ५० सेवक रहित प० मार्ग रहित ग० गोत्रा
वासाइवा, हिरण्णवुट्ठीइवा, सुवण्ण-रयश-बइर-आभरण-पत्त-पुप्फ फल-बीय-मल्लवण्ण-गंध-वत्थ भायण-बुट्ठीइवा, खीरबुट्ठीइवा-सुयालाइवा, दुक्कालाइवा, अप्पुग्धाइवा, महग्घाइवा, सुभिक्खाइवा दुब्भिक्खाइवा, कयविक्कयाइवा, सन्निहीइवा, सन्निचयाइवा,
निहीइवा; निहाणाइवा, चिरपोराणाई, पहीणसामियाइवा, पहीणसेउयाइवा, पहीणहै मग्गाणिवा, पहीण गोत्तागाराइवा, उच्छिण्ण सामियाइवा, उच्छिण्णसेउयाइवा,
उच्छिन्नगोत्तागाराइवा, सिंघाडग-तिग - चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु, नगरगंध व वस्त्र की वर्षा, हिरण्य, सुवर्ण, रत्न, वज्र, आमरण, यावत् वस्त्र भाजन की वृष्टि, क्षीर की वृष्टि, go सुकाल, दुष्काल, अल्प मूल्य, बहु मूल्य, सुभिक्ष, दुभिक्ष, क्रयविक्रय, संचय, संग्रह, निधि, निधान, बहुत काल का संचित कियाहुवा द्रव्य, स्वामी रहित बना हुवा द्रव्य, सेवक रहित बना हुवा द्रव्य, नष्ट मार्ग, नष्ट गोत्राकार, विच्छिन्न स्वामी, विच्छिन्न सेवक, विच्छिन्न गोत्राकार वैसे ही शृंगाटक के आकार में,
तीसरा शतक का सातवा उद्देशा 8
भावार्थ
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